गुरुवार, 14 जून 2018

यात्रा का फाइनल कार्यक्रम हर्षिल नेलांग भ्रमण.

यात्रा का फाइनल कार्यक्रम बन गया है... लेकिन आगे बढ़ने से पहले एक-दो बातें नोट कर लेते हैं...
हम अभी हाल ही में हर्षिल और गंगोत्री गए थे... मेरा फोकस इस बात पर रहा कि होटलों की लोकेशन एकदम अल्टीमेट रहे...
हर्षिल वाकई बहुत खूबसूरत जगह है, लेकिन यहाँ होटल उतनी शानदार लोकेशन पर नहीं हैं... एक बाजार है और उसी में होटल हैं... भागीरथी के किनारे आर्मी है... हो सकता है कि हर्षिल में कोई होटल शानदार लोकेशन पर हो, लेकिन हमें नहीं मिला...
इसलिए हमने ठहरने के लिए हर्षिल की बजाय 3 किमी आगे धराली का चयन किया है... कार्यक्रम वही रहेगा, लेकिन हम धराली में ठहरेंगे...
कार्यक्रम इस प्रकार है...
23 जून: धराली आगमन (हर्षिल से 3 किमी आगे धराली है, आप इस स्थान को देखकर कतई निराश नहीं होंगे... गंगोत्री जाने वाली प्रत्येक बस, गाड़ी धराली से ही होकर जाती है...)
24 जून: हर्षिल, मुखबा और बगोरी भ्रमण... शाम तक वापस धराली लौट आएँगे...
25 जून: सातताल ट्रैक... 8-9 किमी आना-जाना... ट्रैक मुश्किल नहीं है... कोई भी इस ट्रैक को कर सकता है... पहले हमने इस ट्रैक को करना वैकल्पिक किया था, लेकिन स्वयं जाने के बाद पता चला कि आपको इस ट्रैक पर जाना ही चाहिए... किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं है...
रात्रि विश्राम धराली
26 जून: नेलांग भ्रमण... यह उत्तराखंड का एक विशिष्ट स्थान है... यहाँ जाने के लिए अनुमति आवश्यक है... हम अनुमति लेकर ही जाएँगे... यहाँ केवल फोर-व्हीलर से ही जाने की अनुमति है... नेलांग घाटी को उत्तराखंड का लद्दाख भी कहा जाता है...
नेलांग घूमकर दोपहर बाद गंगोत्री जाएँगे... रात्रि विश्राम गंगोत्री में...
27 जून: वापसी... गंगोत्री से उत्तरकाशी, हरिद्वार आदि स्थानों के लिए सुबह बसें और शेयर्ड सूमो मिल जाएंगी...
केवल 4 सीटें बाकी हैं... यात्रा किसी भी आयु के व्यक्ति और अकेली महिलाओं आदि के लिए पूर्णरूप से सुरक्षित है...
आपको अपने घर से धराली जाना और गंगोत्री से अपने घर लौटना अपने स्वयं के खर्च से करना है... बाकी यात्रा का कुल खर्च निर्धारित किया गया है 11000 रुपये प्रति व्यक्ति... इसमें आपके 23 जून को धराली पहुँचने से लेकर 27 जून को गंगोत्री में नाश्ते तक के भोजन, कमरा, गाड़ी, परमिट, खच्चर आदि का सारा खर्च शामिल है... किसी भी तरह की शराब, बीयर पीने की सख्त मनाही है... इच्छुक मित्र जल्दी सम्पर्क करें...

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

मुख्य रूप से ग्राम पंचायत की होती हैं ये जिम्मेदारियां

मुख्य रूप से ग्राम पंचायत की होती हैं ये जिम्मेदारियां

  1. गाँव के रोड को पक्का करना, उनका रख रखाव करना
  2. गांव में पक्की सड़क
  3. गाँव में पशुओं के पीने के पानी की व्यवस्था करना
  4. पशु पालन व्यवसाय को बढ़ावा देना, दूध बिक्री केंद्र और डेयरी की व्यवस्था करना
  5. सिंचाई के साधन की व्यवस्था
  6. गाँव में स्वच्छता बनाये रखना
  7. गाँव के सार्वजनिक स्थानों पर लाइट्स का इंतजाम करना
  8. दाह संस्कार व कब्रिस्तान का रख रखाव करना
  9. गांव में खेती को बढ़ावा देना भी पंचायत का काम। फोटो- अभिषेक
  10. कृषि को बढ़ावा देने वाले प्रयोगों प्रोत्साहित करना
  11. गाँव में प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना
  12. खेल का मैदान व खेल को बढ़ावा देना
  13. गाँव की सड़कों और सार्वजनिक स्थान पर पेड़ लगाना
  14. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ स्कीम को आगे बढ़ाना
  15. जन्म मृत्यु विवाह आदि का रिकॉर्ड रखना
  16. गाँव में भाई चारे का माहौल बनाना
  17. आंगनबाड़ी केंद्र को सुचारू रूप से चलाने में मदद करना
  18. मछली पालन को बढ़ावा देना
  19. मनरेगा के तहत के तहत कार्य
लखनऊ। गांवों के देश भारत में हर वर्ष 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। जैसे देश की संसद से चलता है वैसे ही गांव ग्राम पंचायत से चलते हैं। सरकार गांवों के विकास के लिए इन्हीं पंचायतों को हर साल लाखों रुपए देती है। उदाहरण के लिए आपको बता दूं कि यूपी में औसतन हर ग्राम पंचायत को सालभर में 20-40 लाख रुपए मिलते हैं।
पूरे भारत में साढ़े छह लाख से ज्यादा गांव हैं। पंचायत तीन स्तर पर काम करती हैं, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद पंचायतों के लिए 14वां वित्त लागू किया गया और जिला और क्षेत्र पंचायत के फंड में कटौती करके ग्राम पंचायतों के बजट को काफी बढ़ा दिया गया। पंचायत के कामों में पारदर्शिता और निगरानी के लिए कई नियम भी बनाए गए हैं।
वर्ष 2011 की जनसंख्या के मुताबिक सोलह करोड़ की ग्रामीण आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 59,163 ग्राम पंचायतें हैं। औसतन एक ग्राम पंचायत में 2700 लोग रहते हैं। इन लोगों को अच्छी सुविधाएं देने के लिए उत्तर प्रदेश की पंचायतों को इस साल मिले पैसे का गुणाभाग बताया है कि रकम कितनी ज्यादा है। गांवों में विकास की सबसे प्राथमिक जिम्मेदारी पंचायती रात विभाग की है। जिसे केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर फंड करती हैं।
यूपी में 14वें वित्त की दूसरी किस्त के रुप में पंचायतों को 6 हजार करोड़ रुपए दिए हैं, तो राज्य सरकार ने अपने हिस्से से 2 हजार करोड़ रुपए जारी किए हैं। इसके साथ ही स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की तरफ से 4 हजार 942 करोड़ रुपए मिले हैं। पिछले बार की अपेक्षा मनरेगा के बजट में काफी बढ़ोतरी हुई है और वर्ष 2018-19 के लिए ये 5833 करोड़ रुपए है। इस पूरे पैसो को जोड़ दिया जाए तो औसतन एक व्यक्ति के लिए सरकार 1094 रुपए देती है।
गांवों में जागरुकता और ग्राम पंचायतों को स्वतंत्र बनाए जाने के लिए काम करे राष्ट्रीय मतदाता संघ के अध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता पंकज नाथ कल्कि बताते हैं, जिनता पैसा सरकार देती है अगर उसका 60-70 फीसदी पंचायतों में खर्च हो जाए तो एक ही पंचवर्षीय योजना में गांवों की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन न ऐसा नेता और प्रधान चाहते हैं और न सरकारी मशीनरी।’
अपनी दावों के समर्थन में वो कहते हैं, “साल 1999 से भारत सरकार अपने पैसे से गांवों में शौचालय बनवा रही है, लेकिन करोड़ों घरों में आज भी शौचालय नहीं है।’
निगरानी और पारदर्शिता के सवाल पर उत्तर प्रदेश के पंचायती राज निदेशक आकाश दीप कहते हैं, पंचायत का काम बहुत व्यापक है, इसलिए शुरुआत में कुछ दिक्कतें थे लेकिन अब सब कुछ कंप्यूटर पर है, अगर प्रधान ने किसी को एक प्रधानमंत्री आवास दिया है तो पहले उसके कच्चे घर (झोपडी आदि) की फोटो उसे स्थान से भेजेगा, जिसे जियो टैगिंग कहते हैं, फिर निर्माण होने के बाद दूसरी फोटो आएगी, इसलिए हर तरह से कोशिश करती है पैसा सही जगह खर्च हो और लाभार्थी को पूरा लाभ मिले।’
वो आगे कहते हैं, “सिर्फ पंचायती राज के तहत सड़क, नाली बनाने और पानी की व्यवस्था आदि के (मनरेगा आदि को छोड़कर) 14 से 16 तरह के काम होते हैं। यानि साल में करीब 8-10 लाख वर्क होते हैं, काम को देखते हुए मैनफोर्स और संसाधन कम हैं। ग्राम पंचायतों के डिजिटलाइज होने से ये मुश्किलें और आसान हो जाएंगी, 8000 के करीब कंप्यूटर खरीदे जा चुके हैं, गांवों तक ब्रांडबैंड पहुंच रहा है। संविका कर्मियों (जेई, आपरेटर) आदि की भर्ती के संबंध में कानून रुकावट दूर हो गई है। जल्द प्रक्रिया पूरी होगी।’
दरअसल पंचायतों को दिए जाने वाले पंचायती राज के बजट में 7-10 फीसदी कंटेजेंसी चार्ज होता है। जिस पैसे से पंचायतों को तकनीकी और प्रशासनिक मदद देनी चाहिए, उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014-15 के बाद से इस फंड का करोड़ों रुपए खर्च ही नहीं हो पाया है।
पंकज नाथ कल्कि कहते हैं, “कंटेंजेंसी फंड का खर्च न होना हानिकारक है, इससे न सिर्फ प्रधानों को कार्य योजना (ग्राम पंचायत विकास योजना-जीपीडीपी) बनाने में मुश्किलें आई बल्कि जो कार्य हुआ उसकी निगरानी और क्वालिटी चैक कैसे हुआ। क्योंकि सरकार ने जेई आपरेटर रखे नहीं। इससे भष्टाचार को बढ़ावा मिला।’ हालांकि पंचायती राज निदेशक आकाश दीप के मुताबिक कंटेजेसी फंड का आवश्यकतानुसार गांवों के विकास में इस्तेमाल किया गया है,दूसरा ये काम संविदाकर्मियों से होना था, लेकिन 2014-15 में ही एक रिट कोर्ट में दाखिल हो गई थी, इसलिए देरी हुई, अभी प्रक्रिया जारी है।’
पंचायती राज विभाग के मुताबिक यूपी में सारा काम अब कंप्यूटर पर हो रहा है, ब्लॉक दफ्तर में मौजूद मनरेगा और स्वच्छ भारत मिशन के संसाधनों का सहयोग लिया गया है।

modi care

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हमारी बेटियां हमारा अभिमान

(बेटियों की पुकार -दिल्ली में पिता के लिए ब्ल्ड की जरूरत )
दिल्ली के सरिता विहार के अपोलो हॉस्पिटल में किडनी और लिवर डोनेट कर
अपने पिता पुलिस इंस्पेक्टर रहकर देश की सेवा कर चुके जोरहाट के 54 वर्षीय देबाजित दास को नई जिंदगी देने का प्रयास कर रही आसाम की प्रेरणो दास और कृष्णखी दास आज दिल्लीवासियों से मंगलवार को होने वाले बड़े ऑपरेशन के लिए B Positive ब्ल्ड डोनट करने की गुहार लगा रही है संपर्क
7002922588 !दिल्ली में आसाम के देबाजीत दास को ब्ल्ड डोनेट करने के लिए संपर्क कर सकते है उनके दूसरे नंबर भी 9085704822
नोट -तीन बेटियों और माता पिता के अलावा इस छोटे से परिवार को ब्ल्ड से मदद कर पुण्य के भागी बने !
(हमारी बेटियां हमारा अभिमान)

रविवार, 22 अप्रैल 2018

ECO CRAFT

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CANE CRAFT

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good feeling

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देवकली मन्दिर औरैया

देवकली मन्दिर औरैया में स्थापित शिव लिंग का स्थापत्य काल कन्नौज के राजा जय चन्द्र के शासन काल से सैकड़ो वर्ष पहले 9वी व 10वी शताब्दी का है ၊ यह प्रारम्भिक जानकारी कन्नौज के राजकीय संग्रहालय द्वारा प्राप्त हुई है ၊ अगर 9वी शताब्दी की बात करे तो 836 ईं से 885 ईं तक प्रतिहार वंश के सबसे प्रतापी राजा मिहिर भोज कन्नोज के शासक थे ၊ उनका राज्य सिन्ध से लेकर बंगाल और दक्षिण भारत तक फैला था ၊ वह कुशल शासक के साथ साथ शिव भक्त भी थे ၊ उन्होंने अपने शासन काल में जगह जगह शिव मन्दिरों सहीत अन्य देवी देवताओं के मन्दिरों का निमार्ण करवाया ၊ वाराह भगवान को उन्होंने राजकीय चिन्ह घोषित किया था ၊ उनको बाराह की उपाधि दी गई थी ၊ मिहिर भोज ने अरबो को सिन्ध से Image may contain: food
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खदेड़ कर भारत वर्ष को एक मजबूत शासन प्रदान किया था - जय हिन्द

सोमवार, 19 मार्च 2018

हरसिल, धराली, गंगोत्री ग्रुप-यात्रा - 23 से 27 जून 2018

हरसिल, धराली, गंगोत्री ग्रुप-यात्रा - 23 से 27 जून 2018
यात्रा का कार्यक्रम इस प्रकार है:
23 जून: शाम को हरसिल में एकत्र होंगे। रात्रि विश्राम हरसिल।
24 जून: आज गंगा के शीतकालीन निवास मुखबा और नेलोंग घाटी के विस्थापितों के गाँव बगोरी की यात्रा करेंगे।
25 जून: धराली से 5 किलोमीटर दूर सातताल झीलों की पैदल यात्रा करेंगे।
26 जून: गंगोत्री के इतने नज़दीक आकर अगर दर्शन न किए, तो यात्रा बेकार है। आज गंगोत्री जायेंगे और शाम तक वापस हरसिल लौट आयेंगे। और अगर ग्रुप की इच्छा रही, तो गंगोत्री भी रुक लेंगे।
27 जून: ब्रेकफास्ट के बाद अलविदा।
कुछ और बातें:
1. चूँकि इस यात्रा का आयोजन अकेली दीप्ति कर रही है, इसलिए ‘केवल महिलाएँ’ या ‘केवल फैमिली’ ही साथ चल सकते हैं। ‘केवल पुरुषों’ को जाने की अनुमति नहीं है।
2. अपने घर से हरसिल जाना और वापस आना आपको स्वयं अपने खर्चे पर करना होगा। हरिद्वार और ऋषिकेश से सुबह-सवेरे गंगोत्री जाने वाली बसें चलती हैं, जो शाम तक हरसिल पहुँच जाती हैं। हरसिल उत्तरकाशी से 75 किलोमीटर आगे और गंगोत्री से 25 किलोमीटर पीछे है। टैक्सी भी आसानी से मिल जाती है।
3. हरसिल, धराली में उपलब्धता के अनुसार कैंपिंग भी की जा सकती है।
4. यह यात्रा अकेली महिला के लिये भी पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
5. किसी भी तरह की शराब और मांसाहार पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। यदि आप यात्रा के दौरान किसी भी समय ऐसा करते हुए पाये गये, तो 2000 रुपये का जुर्माना भी लगेगा और फेसबुक पर आपका नाम भी सार्वजनिक किया जायेगा।
6. इस यात्रा के लिये 11000 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क तय किया गया है। इसमें हरसिल से हरसिल तक का सारा खर्च (भोजन, कमरा/टैंट, गाड़ी) शामिल है।
7. सीटों की संख्या सीमित है। अपनी सीट बुक करने के लिये आपको 11000 रुपये प्रति व्यक्ति एडवांस जमा करने होंगे। इनमें से 2000 रुपये नॉन-रिफंडेबल होंगे और यदि आप 20 जून या उससे पहले यात्रा रद्द करते हैं तो आपको 9000 रुपये वापस लौटा दिये जायेंगे। 20 जून के बाद यात्रा रद्द करने पर कुछ भी राशि वापस नहीं लौटायी जायेगी।
8. 0-4 वर्ष के बच्चों का कोई शुल्क नहीं, 5-10 वर्ष के बच्चों के 6000 रुपये और उससे बड़े बच्चों के पूरे 11000 रुपये लगेंगे।
9. जो भी मित्र अग्रिम राशि जमा कर देंगे, उन्हें एक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा जायेगा, जहाँ इस यात्रा के बारे में सभी तरह की चर्चाएँ होंगी।
10. यदि आप गौमुख भी जाना चाहते हैं, तो उसकी व्यवस्था करने में आपको दीप्ति का सहयोग करना होगा। गंगोत्री से गौमुख जाने और वापस आने में जो भी वास्तविक खर्च होगा, आपको उसका भुगतान करना होगा। ऊपर लिखे गये 11000 रुपये में गौमुख की योजना और खर्च शामिल नहीं है।
अग्रिम राशि इस खाते में जमा करें:
Name: Deepti Singh
A/C No: 520101011184295 (Saving A/C)
Corporation Bank, Vasant Vihar, New Delhi
IFSC Code: CORP0000564
लेटेस्ट अपडेट के लिए यह फेसबुक इवेंट बनाया गया है।

लाखामंडल, चकराता, देवबन ग्रुप-यात्रा - 2 से 6 जून 2018 यात्रा का कार्यक्रम इस प्रकार है:

लाखामंडल, चकराता, देवबन ग्रुप-यात्रा - 2 से 6 जून 2018
यात्रा का कार्यक्रम इस प्रकार है:
2 जून: सुबह 10 बजे देहरादून रेलवे स्टेशन से यात्रा आरंभ होगी और सीधे लाखामंडल पहुँचेंगे। गुफाएँ और प्राचीन शिव मंदिर देखेंगे और जौनसार के ग्रामीण जनजीवन की झलक भी देखेंगे।
3 जून: लाखामंडल से चकराता की ओर चलेंगे और रास्ते में चकराता की शान टाइगर जलप्रपात देखते हुए शाम तक देवबन पहुँच जायेंगे।
4 जून: बुधेर गुफाओं तक की आसान पैदल यात्रा करेंगे। इसके अलावा 2500 मीटर की ऊँचाई पर ‘लो-एल्टीट्यूड बुग्याल’ भी देखेंगे।
5 जून: इससे पहले कि आप एक दिन और रुकने का आग्रह करते, हमने आपका यह आग्रह पहले ही मान लिया। उत्तराखंड का यह इलाका पर्यटन से दूर है, लेकिन बेहद खूबसूरत है।
6 जून: वापसी का दिन है। शाम तक आपको देहरादून रेलवे स्टेशन छोड़ दिया जायेगा।
कुछ और बातें:
1. चूँकि इस यात्रा का आयोजन अकेली दीप्ति कर रही है, इसलिए ‘केवल महिलाएँ’ या ‘केवल फैमिली’ ही साथ चल सकते हैं। ‘केवल पुरुषों’ को जाने की अनुमति नहीं है।
2. अपने घर से देहरादून आना-जाना आपको स्वयं अपने खर्चे पर करना होगा। पूरे देश से देहरादून के लिए ट्रेनें चलती हैं। और दिल्ली से 24 घंटे अच्छी बस सेवा है। दिल्ली से बस से देहरादून पहुँचने में कम से कम 7 घंटे लगते हैं।
3. देवबन, कानासर में उपलब्धता के अनुसार कैंपिंग भी की जा सकती है।
4. यह यात्रा अकेली महिला के लिये भी पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
5. किसी भी तरह की शराब और मांसाहार पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। यदि आप यात्रा के दौरान किसी भी समय ऐसा करते हुए पाये गये, तो 2000 रुपये का जुर्माना भी लगेगा और फेसबुक पर आपका नाम भी सार्वजनिक किया जायेगा।
6. इस यात्रा के लिये 11000 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क तय किया गया है। इसमें देहरादून से देहरादून तक का सारा खर्च (भोजन, कमरा/टैंट, गाड़ी) शामिल है।
7. सीटों की संख्या सीमित है। अपनी सीट बुक करने के लिये आपको 11000 रुपये प्रति व्यक्ति एडवांस जमा करने होंगे। इनमें से 1000 रुपये नॉन-रिफंडेबल होंगे और यदि आप 30 मई या उससे पहले यात्रा रद्द करते हैं तो आपको 10000 रुपये वापस लौटा दिये जायेंगे। 30 मई के बाद यात्रा रद्द करने पर कुछ भी राशि वापस नहीं लौटायी जायेगी।
8. 0-4 वर्ष के बच्चों का कोई शुल्क नहीं, 5-10 वर्ष के बच्चों के 6000 रुपये और उससे बड़े बच्चों के पूरे 11000 रुपये लगेंगे।
9. जो भी मित्र अग्रिम राशि जमा कर देंगे, उन्हें एक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ा जायेगा, जहाँ इस यात्रा के बारे में सभी तरह की चर्चाएँ होंगी।
10. यदि आप अपनी गाड़ी से जाना चाहते हैं, तो आपको 2000 रुपये की छूट मिलेगी।
अग्रिम राशि इस खाते में जमा करें:
Name: Deepti Singh
A/C No: 520101011184295 (Saving A/C)
Corporation Bank, Vasant Vihar, New Delhi
IFSC Code: CORP0000564

रविवार, 4 मार्च 2018

अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद से लगभग 100 किमी की दूरी पर अवस्थित हैं

अजंता की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद से लगभग 100 किमी की दूरी पर अवस्थित हैं। अपने स्वर्णिम काल के इतिहास की परतों में गुम हाे जाने के बाद 1819 में मद्रास सेना के कुछ यूरोपीय सैनिकों ने अनजाने में ही इन गुफाओं का पता लगाया। बाद में सन 1824 में जनरल सर जेम्स अलेक्जेण्डर ने राॅयल एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका में सर्वप्रथम अजंता गुफाओं पर लेख प्रकाशित कर इन्हें शेष विश्व की नजर में लाया।
ये गुफाएँ वाघोरा नदी की घाटी में निकटवर्ती धरातल से 76 मीटर की ऊँचाई पर घोड़े की नाल के आकार में खोदी गयीं हैं। अजंता गुफाओं की समुद्रतल से ऊँचार्इ 439 मीटर या 1440 फुट है।
नदी घाटी का यह स्थान उस समय बौद्ध भिक्षुओं के लिए साधना हेतु उपयुक्त माहौल प्रदान करता रहा होगा। आरम्भ में प्रत्येक गुफा से नदी की धारा तक सीढ़ियां बनी थीं जिनमें से काफी अब नष्ट हो चुकी हैं। ये गुफाएँ बेसाल्ट शैल की बनी हुई चट्टानों में खोदी गयीं हैं। निर्माण काल के आधार पर इन गुफाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है। कुल तीस गुफाओं में से छः का उत्खनन बौद्ध धर्म के हीनयान काल में हुआ जिनमें से 9 और 10 चैत्य हैं तथा 12,13 व 15 विहार हैं।
इन गुफाओं के निर्माण का दूसरा काल 5वीं–6वीं शताब्दी से शुरू होकर अगली दो शताब्दियों तक चलता रहा।इन नयी गुफाओं का निर्माण गुप्त शासकों के समकालीन वाकाटक शासकों के संरक्षण में चलता रहा। इन उत्खननों का मुख्य उद्देश्य राजपरिवार के सदस्यों और सामंतों द्वारा वाकाटक शासकों के प्रति निष्ठा दर्शाना था। सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत आने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इन गुफाओं का सजीव वर्णन किया है जबकि वह इन गुफाओं तक नहीं पहुँचा था। गुफा संख्या 26 में प्राप्त एक राष्ट्रकूट अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि 8वीं–9वीं शताब्दी तक इन गुफाओं का प्रयोग किया जाता रहा।

लक्षण तथा चित्रकला दोनों ही दृष्टियों से भारतीय कला केन्द्रों में अजंता का स्थान अत्यन्त ऊँचा है। अजंता की गुफाओं का निर्माण ईसवी पूर्व दूसरी शताब्दी से लेकर सातवीं शताब्दी तक हुआ। वैसे तो अजंता की सारी गुफाएं बौद्ध धर्म से ही सम्बंधित हैं फिर भी दूसरी शताब्दी तक यहाँ हीनयान मत का प्रभाव था और उसके बाद महायान मत का। इन गुफाओं में बुद्ध तथा बोधिसत्वों का चित्रण मिलता है। इनमें जातक कथाओं तथा बुद्ध के जीवन की विविध घटनाओं को आधार बनाकर चित्रांकन किया गया है। अजंता में कुल 30 गुफाओं का निर्माण किया गया है जिनमें से पाँच गुफाएं 9,10,19,26,29 चैत्य और शेष विहार गुफाएं हैं। चैत्य का मतलब पूजागृह तथा विहार का मतलब निवास के लिए बनाये गये आश्रम।
वैसे तो अजंता की गुफाओं में बुद्ध की और अन्य मूर्तियां तो लगभग सभी जगह हैं परन्तु चित्रांकन केवल छः गुफाओं 1,2,9,10,16,17 में है। सम्भव है कि अन्य गुफाअों में किये गये चित्रांकन समय के साथ नष्ट हो गये हों। अजंता की गुफाओं में सर्वाधिक चित्रकारी भारतीय इतिहास के स्वर्णयुग गुप्त काल की हैं। इस काल के चित्र सर्वाधिक सुन्दर भी हैं। गुफा संख्या 9 व 10 में की गयी चित्रकारी ईस्वी पूर्व पहली शताब्दी की है जबकि गुफा संख्या 16 व 17 की चित्रकारी गुप्तकाल की है। गुफा संख्या 1 व 2 के चित्र सातवीं शताब्दी के हैं।

मैं स्वयं के द्वारा पढ़ी हुई इतिहास की किताबों के आधार पर चित्रों को पहचानने की कोशिश कर रहा था। साथ ही पर्यटकों के किसी समूह के साथ आये गाइड के भाषणों से भी जानकारी चुराने का प्रयास कर रहा था और इसमें सफल भी हो रहा था। चूँकि गुफाओं में फोटाग्राफी करने के लिहाज से पर्याप्त प्रकाश नहीं था और फ्लैश प्रतिबन्धित था। साथ ही मेरे पास बहुत हाई क्वालिटी का कैमरा भी नहीं था तो मैं चित्रों की साफ–सुथरी फोटो लेने में असफल हो रहा था। फिर भी प्रयास जारी था। गुफा संख्या 1 व 2 सर्वाधिक नवीन हैं। गुफा 1 जो महायान सम्प्रदाय से सम्बंधित है,के बरामदे से अंदर प्रवेश करने पर एक बड़ा हॉल दिखायी पड़ता है। यह बीस स्तम्भों पर टिका है जिन पर सुन्दर नक्काशी की गयी है। गर्भगृह में भगवान बुद्ध की प्रतिमा व्याख्यान मुद्रा में स्थापित है। इस गुफा में एक भारतीय राजा के दरबार का चित्र है जिसमें कोई विदेशी दूत आया हुआ हैं। इसमें राजा दक्षिणी भारत की वेशभूषा के अनुरूप अधोवस्त्र पहने हुए है जबकि दूत को ईरानी टोपी,जामा तथा चुस्त पायजामा पहने हुए चित्रित किया गया है। दूत की दाढ़ी भी ईरानी ढंग की है। इसकी तुलना भारतीय शासक पुलकेशिन दि्वतीय के दरबार में आये फारस के राजदूत से की जाती है। इसी गुफा में बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का एक सुन्दर चित्र बना है जिसमें बुद्ध को दायें हाथ में नीलकमल लिये हुए टेढ़ी मुद्रा में खड़ा दिखाया गया है। इसी चित्र के बगल में एक नारी का चित्र बना हुआ है जिसे काली राजकुमारी कहा जाता है। इसी गुफा में बुद्ध का कामदेव विजय का एक काफी बड़ा चित्र भी है। इसमें बुद्ध तपस्या में लीन हैं और कामदेव कई कन्याओं के साथ उन्हें रिझाने का प्रयास कर रहा है। इसी गुफा में एक मधुपायी दम्पत्ति का चित्रण भी किया गया है जिसमें प्रेमी अपने हाथ से प्रेमिका को मधुपात्र देते दिखाया गया है। एक जगह शिवि जातक की कथा को भी चित्रित किया गया है। यहीं नागराज की सभा का भी चित्रण किया गया है। मगधराज तथा नागराज के बीच वार्तालाप का भी चित्रांकन किया गया है।

गुफा संख्या 2 भी महायान सम्प्रदाय को समर्पित है। इस गुफा के प्रमुख चित्रों में बुद्ध की माता मायादेवी के शयन कक्ष का चित्र है। इसके आगे सिंहासन पर बैठे बोधिसत्व का चित्र है। यहाँ उनके हाथ धर्मचक्रप्रवर्तन की मुद्रा में हैं। एक और चित्र में शुद्धोधन तथा मायादेवी खड़े दिखायी देते हैं। इनके साथ परिचारिकाएं भी चित्रित की गयीं हैं। सामने दो ज्योतिषी तथा दायीं ओर एक स्तम्भ के सहारे टिकी हुई एक सुसज्जित नारी का चित्रण है। इसके आगे सिद्धार्थ के जन्म की कथा चित्रित की गयी है। इसी गुफा में द्यूतक्रीड़ा का एक सुन्दर चित्रण है। अन्य चित्रों में झूला झूलती राजकुमारी,बोधिसत्व से उपदेश सुनती काशिराज की राजमहिषियाँ,बोधिसत्व की पूजा में लीन एक साधक के चित्र भी चित्रित किये गये हैं। इसके अलावा हंस जातक का चित्र भी प्रदर्शित किया गया है।
गुफा संख्या 3 अपूर्ण है।
गुफा संख्या 4 इस समूह की सबसे विशाल गुफा है जो 28 स्तम्भों पर टिकी है। यह गुफा भी संभवतः पूर्ण नहीं हो सकी है। इस गुफा को मथुरा नामक एक व्यक्ति ने विहार को दान में दिया था। गुफा के द्वार पर द्वारपालों की प्रतिमाएं बनी हुईं हैं। गुफा में संकटग्रस्त मनुष्य की सहायता करने वाले अवलोकितेश्वर का चित्रांकन किया गया है।
गुफा संख्या 5 भी अधूरी है।

गुफा संख्या 6 दुमंजिला है। पहली मंजिल पर बने हुए सभाकक्ष में पद्मासन लगाये बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। इसकी दूसरी मंजिल पर सीढ़ियों से चढ़ने के लिए लोग लाइन लगाये हुए थे। सँकरी सीढ़ियों पर एक साथ चढ़ना और उतरना काफी खतरनाक लग रहा था।
गुफा संख्या 7 एक छोटी गुफा है जिसके गर्भगृह में बुद्ध की मूर्ति बनी हुई है। गुफा संख्या 8 पर पर्यटन विभाग का कब्जा है।
अजंता गुफा समूह की गुफा संख्या 9 व 10 सबसे प्राचीन हैं। इन गुफाओं में बने चित्र भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम नमूने हैं। इनके बाद के लगभग 300 वर्षाें तक चित्रण का कोई उदाहरण नहीं मिलता। इन गुफाओं के चित्र सामान्य ही हैं। गुफा 9 में पगड़ी धारण किये हुए पुरूषों का चित्रण किया गया है। ये पुरूष गले में मोटी–मोटी मालायें,कानों में कर्णफूल,हाथों में कड़े तथा कमर में कमरबन्द पहने दिखायी देते हैं। प्रवेश द्वार के पास एक जुलूस का चित्र भी है। चित्रों की पृष्ठभूमि में वृक्षों का अंकन विशेष रूप से किया गया है।
गुफा 10 में हीनयान सम्प्रदाय से सम्बन्धित एक चैत्य है। यह गुफा 40 स्तम्भों पर टिकी है। गुफा में एक छोटा सा स्तूप भी बना हुआ है। यहाँ हाथियों को विविध प्रकार से क्रीड़ा करते हुए सुन्दरता से चित्रित किया गया है। गुफा के स्तम्भों पर बुद्ध की अनेक आकृतियां बनायी गयी हैं।
गुफा संख्या 11 बड़े सभा कक्ष वाली गुफा है। गुफा संख्या 12 में भी एक विहार है। गुफा संख्या 13 व 14 पुरातत्व विभाग के स्टोर रूम की तरह से उपयोग में हैं। गुफा संख्या 15 भी अन्य गुफाओं की तरह मुख्य मंडप,सभा मंडप और गर्भगृह में भगवान बुद्ध की मूर्ति युक्त एक विहार गुफा है।

गुफा संख्या 16 व 17 महत्वपूर्ण गुुफाएँ हैं। गुफा संख्या 16 की चित्रकारी 500 ईस्वी के आस–पास प्रारम्भ होती है। इसमें मरणासन्न राजकुमारी का चित्र सर्वाधिक सुन्दर एवं महत्वपूर्ण है। इसमें पति के विरह में मरती हुई राजकुमारी का चित्र है। राजकुमारी के चारों ओर उसके शोकाकुल परिजन खड़े हैं। एक सेविका उसे सहारा देकर ऊपर उठाये है तथा दूसरी उसे पंखा झल रही है। एक स्त्री अत्यन्त आतुर होकर उसका हाथ अपने हाथ में थामे है। दो सेविकाएं हाथ में कलश लिए खड़ी हैं। राजकुमारी की आँखें बंद हैं और परिजनों के चेहरे पर दुख का भाव है। इस राजकुमारी की पहचान बुद्ध के सौतेले भाई नंद की पत्नी सुंदरी के रूप में की जाती है। इसी गुफा के एक चित्र में बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण का चित्रण किया गया है। इसमें उनकी वैराग्य भावना दर्शनीय है। इसके अतिरिक्त बुद्ध के जीवन से सम्बंधित कुछ अन्य दृश्यों का भी चित्रांकन किया गया है।
गुफा संख्या 17 को चित्रशाला कहा जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के चित्रांकन किये गये हैं। इसमें बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं जैसे उनके जन्म,महाभिनिष्क्रमण,महापरिनिर्वाण से सम्बन्धित दृश्यों का चित्रांकन किया गया है। इस गुफा का माता और शिशु नामक चित्र सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस चित्र में सम्भवतः बुद्ध की पत्नी अपने पुत्र को उन्हें समर्पित कर रही हैं। माता तथा पुत्र दोनाें एकटक बुद्ध को देख रहे हैं। एक अन्य चित्र में बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण को अंकित किया गया है। एक अन्य चित्र में एक सम्राट को एक सुनहले हंस से बातें करते हुए चित्रित किया गया है। इसी गुफा में गंधर्वराज को अप्सराओं और परिचारकों के साथ आकाश में विचरण करते हुए दिखाया गया है। जातक कथाओं से सम्बन्धित सर्वाधिक चित्र इसी गुुफा में ही चित्रित किये गये हैं।

गुफा संख्या 19 एक चैत्य है तथा काफी सुन्दर है। चैत्य का आकार परम्परा से ही घोड़े की नाल के आकार का होता है। इसमें तीन छतरियों वाला एक स्तूप है।
गुफा संख्या 18 एवं 20 विहार हैं। गुफा संख्या 21 से 25 तक भी विहार हैं और पूर्ण नहीं हो सकी हैं।
गुफा संख्या 26 एक चैत्य या पूजागृह है। इस गुफा में की गयी बारीक मूर्तिकारी और नक्काशी की वजह से यह काफी आकर्षक बन पड़ी है। मुख्य स्तूप में मण्डप में बैठी हुई बुद्ध प्रतिमा स्थापित है। गुफा में प्रवेश करते ही बायीं तरफ बुद्ध के महापरिनिर्वाण को प्रदर्शित करते हुए 23 फीट लम्बी लेटी हुई प्रतिमा बनी हुई है।
गुफा संख्या 27 में बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित दाे चित्र प्रदर्शित किये गये हैं। गुफा संख्या 28 व 29 काफी ऊँचाई पर स्थित हैं और यहाँ पहुँचने के लिए मार्ग उपलब्ध नहीं है। गुफा संख्या 30 की खोज 1956 में हुई जो गुफा संख्या 15 व 16 के बीच में स्थित एक छोटा सा विहार है।
इन गुफाओं के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को देखते हुए यूनेस्को ने 1983 में इन्हें विश्व विरासत स्थल का दर्जा प्रदान किया।
सब कुछ घूम लेने के बाद जब हम वापस टिकट काउण्टर के पास पहुुँचे तो 2.45 बज रहे थे। भूख अपने चरम पर थी। पास में पर्यटन विभाग का एक रेस्टोरेण्ट था। और जब इतनी सारी गुफाएं मिलकर भीड़ को नहीं सँभाल पा रहीं थीं तो एक रेस्टोरण्ट क्या सँभालेगा। वहाँ भी लाइन लगी थी। हार मानकर बाहर बिक रहे चने–चबेने का सहारा लिया गया। तभी एक लम्बी लाइन लगी दिखी। और जब लम्बी लाइन दिखती है तो हम भारतीयों का तेज जाग उठता है। पता किया तो यह वापसी के लिए बस में चढ़ने के लिए लगी लाइन थी। हमने भी जल्दी से भागकर लाइन की पूँछ पकड़ी। कुछ देर तक तो धैर्य बना रहा लेकिन देर होती देख व्यग्रता बढ़ने लगी। बसें तो मूसलाधार भाग रहीं थीं और लाइन थी कि आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही थीं। रिजर्व बसों से आये बड़े–बड़े समूह समस्या की जड़ थे। क्योंकि उनके गाइड अकेले ही लाइन में लगकर सबकी टिकट बुक करा ले रहे थे और छोटी गाड़ियों या फिर हमारी तरह इक्के–दुक्के बसों से आये लाेग लाइन की पूँछ ही पकड़े रह जा रहे थे। कान पकड़ने की नौबत ही नहीं आ रही थी।

लाइन में लगे–लगे एक घण्टे बीत गये तब जाकर अपना भी नम्बर आया। थोड़ी सी समझदारी हमने पहले ही दिखायी होती तो पैदल ही तीन किमी की दूरी तय कर वापस चले गये होते। समय और पैसे दोनों की ही बचत हो गयी होती। अजंता गेट तक पहुँचने में चार बज गये। यहाँ जल्दी से पेट पूजा की गयी और बस के इंतजार में लग गये। यहाँ एक व्यक्ति ने सलाह दी कि यहाँ बस मिलने में दिक्कत हो सकती है क्योंकि हो सकता है बस यहाँ रूके ही न। उसकी सलाह मानकर हम तुरंत आटो पकड़कर अजंता से और आगे अर्थात भुसावल की तरफ फर्दापुर बस स्टैण्ड चले गये। 20 रूपये ऑटो वाले को भुगतना पड़ा। तुरंत ही बस मिल गयी लेकिन सीट नहीं मिल सकी। लगभग एक घण्टे खड़े होकर यात्रा करनी पड़ी तब जाकर सीट मिली। 7.15 तक हम औरंगाबाद पहुँच गये।
औरंगाबाद पहुँचने के बाद फिर वही भोजन के लिए संघर्ष। वैसे संघर्ष करना नहीं पड़ा। शाकाहारी रेस्टोरेण्ट पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। शाकाहारी भोजन हर तरह का मिल जायेगा भले ही जेब थोड़ी ढीली हो जाए। तो एक दिन के लिए हमने भी जेब ढीली करने का फैसला किया और एक रेस्टोरेण्ट में मटर पनीर व रोटी का आर्डर किया। भले ही जेब को किसी दूसरे दिन थोड़ी टाइट कर लेंगे।

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

तिरुपति की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। चेन्नई से तिरुपति जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है

तिरुपति बालाजी
तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहाँ वेंकटेश्वरस्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है।
मंदिर की चढ़ाई
पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
केशदान
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड ईश्वर को समर्पित करते हैं। पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
सर्वदर्शनम
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
प्रसादम
यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
लड्डू
पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।
ब्रह्मोत्सव
तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।
विवाह संस्कार
यहाँ पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है। इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं। यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
रहने की व्यवस्था
तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है। वैसे आजकल तो इंटरनेट का जमाना है तो इसकी बुकिंग तिरुमला-तिरुपति देवसंस्थानम की वेबसाइट पर हो जाती है और बुकिंग 2-3 माह पहले करवानी पड़ती है।
कैसे पहुँचें?
तिरुपति सड़क और रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से तिरुपति तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से तिरुपति तक रेल सेवा नहीं है वो चेन्नई होते हुए तिरुपति जा सकते हैं। चेन्नई से तिरुपति की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। चेन्नई से तिरुपति जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है। तिरुपति से तिरुमला तक बस से या पैदल जाना होता है।
मंदिर में दर्शन
भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन चार तरह से होते हैं :
1. ऑनलाइन बुकिंग द्वारा जिसकी बुकिंग https://ttdsevaonline.com पर दो से तीन महीने पहले करनी होती है और दिए गए तारीख को आप दिए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगना होता है और दर्शन करने में करीब 2 घंटे का वक़्त लगता है। इसकी बुकिंग भी हर घंटे के हिसाब से होती है। इस दर्शन की बुकिंग के लिए 300 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से बुकिंग के समय ऑनलाइन भुगतान करना पड़ता है और दर्शन के बाद प्रसाद के रूप में 2 लडडू मुफ्त।
2. अगर आपने ऑनलाइन बुकिंग नहीं तो तिरुमला स्थित किसी भी बैंक में 1000 रूपए भुगतान करके 300 रूपए वाला कूपन लेकर दिए गए समय से 2 घण्टे पहले लाइन में लगे और 2 घंटे में दर्शन करें।
3. फ्री दर्शन लाइन इसे सुदर्शन लाइन कहते हैं। यह 12 से 14 घण्टे हॉल में बैठने के बाद दर्शन के लिए छोड़ते हैं।
4. अगर आप ट्रेकिंग पथ से तिरुपति से तिरुम्माला जाये तो 50 रूपये के पर्ची कटवाना पड़ता है और करीब 10 किमी की आसान चढ़ाई है और दर्शन मात्र 3 घंटे में होंगे और प्रसाद के रूप में 1 लड्डू फ्री। जब आप तिरुपति से तिरुम्माला पैदल जा रहे होते है तो ये यात्री पैदल ही जा रहा है या नहीं ये देखने के लिए पूरे रास्ते में 3-4 जगहों पर चेकिंग होती है।

शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

सिर दर्द को दूर करने के लिए आवश्यक है

सिर दर्द को दूर करने के लिए आवश्यक है कि योग व आयुर्वेद का अपने जीवन में अपनाये..अनुलोम विलोम, भ्रामरी करें और फिर धयान 10 मिनट तक करना चाहिए! अयूर्वैदिक दवाई ब्रामी वटी, मेधा वटी, पथ्य आधि काड़ा, Sarswtaaristm, लें तो जरूर लाभ होगा! प्राकृतिक चिकित्सा
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वरजिससे हम सांस लेते और छोड़ते हैं,पर यह बिलकुलअलग – अलग असर डालते हैं और आप फर्क महसूस करसकते हैं |दाहिना नासिका छिद्र “सूर्य” औरबायां नासिका छिद्र “चन्द्र” के लक्षणको दर्शाता है या प्रतिनिधित्व करता है |सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्रको बंद करें और बाएं से सांस लें |और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द “गायब” हैना आसान ?? और यकीन मानिए यहउतना ही प्रभावकारी भी है..===========================अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बसइसका उल्टा करें…यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें औरदायें से सांस लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में“तरोताजा” महसूस करें |===========================दाहिना नासिका छिद्र “गर्म प्रकृति”रखता है और बायां “ठंडी प्रकृति”अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिनेनासिका छिद्र से सांस लेते हैं और तदनरूपक्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य औरचन्द्रमा की तरह |================प्रातः काल में उठते समय अगर आपबायीं नासिका छिद्र से सांस लेने में बेहतरमहसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूसहोगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंदकरें, दायीं से सांस लेने का प्रयास करें औरतरोताजा हो जाएँ |================अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसेआजमायें ,दाहिने को बंद करबायीं नासिका छिद्र से सांस लेंबस इसे नियमित रूप से एक महिना करें औरस्वास्थ्य लाभ लें |==============तो बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थमहसूस करे
सर दर्द से राहत के लिए
1 . तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सर दर्द में अत्यधिक लाभ होता है .
2 . नारियल पानी में या चावल धुले पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सर पर लेप करने भी सर दर्द में आराम पहुंचेगा .
3 . सफ़ेद चन्दन पावडर को चावल धुले पानी में घिसकर उसका लेप लगाने से भी फायेदा होगा .
4 . सफ़ेद सूती का कपडा पानी में भिगोकर माथे पर रखने से भी आराम मिलता है .
5 . लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप भी सर दर्द में आरामदायक होता है .
6 . लाल तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर 2, 3 बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा .
7 . चावल धुले पानी में जायेफल घिसकर उसका लेप लगाने से भी सर दर्द में आराम देगा .
8 . हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी बहुत आराम मिलेगा .
9 . सफ़ेद सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

नाथों के नाथ केदारनाथ, हर हर महादेव

नाथों के नाथ केदारनाथ, हर हर महादेव
अब जबकि केदारनाथ के कपाट खुलने की तिथि की घोषणा हो चुकी है तो मैं केदारनाथ के दर्शनों को जाने वाले शिवभक्तों के लिए छोटी सी जरूरी जानकारी प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद है आपको पसंद आएगी।
*1. केदारनाथ क्यों जाएं?*
केदारनाथ जाने की कई वजहें हो सकती हैं जिनमें पहली वजह धार्मिक ही है। केदारनाथ एक पवित्र तीर्थ स्थल है जहां भगवान शंकर का ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यदि आप धार्मिक वजह से न भी आएं तो प्राकृतिक नजारों को देखने के लिए यहां आ सकते हैं, पर मौज मस्ती के उद्देश्य से यहां कभी नहीं आएं।
*2. केदारनाथ कैसे जाएं?*
केदारनाथ की यात्रा सही मायने में हरिद्वार या ऋषिकेश से आरंभ होती है। हरिद्वार देश के सभी बड़े और प्रमुख शहरो से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। हरिद्वार तक आप ट्रेन से आ सकते है। यहाँ से आगे जाने के लिए आप चाहे तो टैक्सी बुक कर सकते हैं या बस से भी जा सकते हैं। हरिद्वार से सोनप्रयाग 235 किलोमाटर और सोनप्रयाग से गौरीकुंड 5 किलोमाटर आप सड़क मार्ग से किसी भी प्रकार की गाड़ी से जा सकते है। इससे आगे का 16 किलोमाटर का रास्ता आपको पैदल ही चलना होगा या आप पालकी या घोडा से भी जा सकते हैं। रास्ता भी बहुत बहुत संभल कर चलने वाला है। हरिद्वार या ऋषिकेश में से आप जहाँ से भी यात्रा आरम्भ करें गौरीकुंड तक पहुँचने में 2 दिन लें। आप रात्रि विश्राम श्रीनगर (गढ़वाल) या रुद्रप्रयाग में करें और अगले दिन गौरीकुंड जाएं। यदि आप एक दिन में गौरीकुंड चले जाते हैं तो इस पहाड़ी रास्ते पर आप इतना अधिक थक जायेगें कि अगले दिन प्रतिकूल मौसम वाले जगह में गौरीकुंड से केदारनाथ की चढ़ाई चढ़ने में बहुत ही दिक्कत महसूस करेंगे। अच्छा यही होगा आप 2 दिन का समय लें ऐसा मेरा मानना है और मेरा अनुभव भी है। हरिद्वार के रास्ते में आपको बहुत ऐसे स्थान मिलेंगे जहाँ आप रात में रुक सकते हैं। पर इन जगहों में श्रीनगर और रुद्रप्रयाग लगभग आधी दुरी पर है। आप चाहे तो गुप्तकाशी में भी रुक सकते हैं और यदि आप पहले दिन हरिद्वार या ऋषिकेश से गुप्तकाशी तक पहुँच जाते हैं तो अगले दिन गौरीकुंड में रुकने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि गुप्तकाशी से गौरीकुंड 1 से 1ः30 घंटे का ही रास्ता है। आप अपना सामान होटल या गेस्ट हाउस में लाॅकर रूम में रखवाकर गुप्तकाशी से सुबह जल्दी 6 बजे तक निकल जाएँ और 8 बजे तक गौरीकुंड से चढ़ाई करना शुरू कर दें। शाम तक केदारनाथ पहुंचे दर्शन करे और रात में केदारनाथ में रुकें। यदि चाहे तो सुबह फिर से दर्शन करे और फिर वापस गौरीकुंड आ जाये और फिर गौरीकुंड से गुप्तकाशी आकर रात में रुकें। यदि आप पहले दिन श्रीनगर या रुदप्रयाग में रुकते हैं तो अगले दिन आप सारा सामान साथ में ले जाये और गौरीकुंड तक पहुचे और रात में गौरीकुंड में ठहरें। और फिर उसके अगले दिन सामान लाॅकर रूम में रखकर सुबह 5 बजे चढ़ाई शुरू कर दें। केदारनाथ पहुँच कर दर्शन करे फिर रात में रुकें या वापस गौरीकुंड वापस आ जाये। पर मेरा तो ये मानना है कि यदि आप केदारनाथ जाते है तो भोलेनाथ की उस धरती पर एक रात अवश्य गुजारें। एक बात और गौरीकुंड से केदारनाथ के रास्ते में दोपहर बाद मौसम खराब हो जाता है जो करीब 2 से 3 बजे तक खराब ही रहता है और ये कोई एक या दो दिन नहीं बल्कि हर दिन होता है।
बस से जाने के लिए आपको पहले रुद्रप्रयाग जाना होगा। रुद्रप्रयाग से दो रास्ते हो जाते हैं। एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा बद्रीनाथ जाता है। हरिद्वार या ऋषिकेश से बस मिलती है जो देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग होते हुए चमोली जाती है और चमोली से गोपेश्वर तक जाती है। उसी बस से आप रुद्रप्रयोग तक का सफर कर सकते हैं। रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड तक के सफर के लिए पहले सोनप्रयाग तक जाना होगा। सोनप्रयाग तक जाने के लिए रुद्रप्रयाग से सीधी बसें या जीपें मिल जाती है और यदि नहीं भी मिले तो गुप्तकाशी तक जा सकते हैं और उसके बाद गुप्तकाशी से सोनप्रयाग। सोनप्रयाग पहुंचकर वहां से जीप द्वारा गौरीकुण्ड तक पहुंचे। गौरीकुंड से केदारनाथ का रास्ता पैदल का है। यहाँ से पैदल, पालकी या घोड़े पर जा सकते है।
*3. केदारनाथ कब जाएं?*
केदारनाथ आने के लिये मई से अक्टूबर के मध्य का समय आदर्श माना जाता है क्योंकि इस दौरान मौसम काफी सुखद रहता है। भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ के मूल निवासी भी सर्दियों में पलायन कर जाते हैं। वैसे भी ये मंदिर केवल गर्मियों ही खुलता है। हर साल मंदिर खुलने में और बंद होने में कुछ दिनों को फर्क होता है क्योकि इसके लिए मुर्हूत निकाला जाता है हिंदी पंचांग के अनुसार होता है। कपाट खुलने की तिथि अक्षय तृतीया और बंद होने की तिथि दीपावली के आसपास होती है। बरसात के मौसम में जाना यहाँ ठीक नहीं होता क्योकि इस दौरान लैंड स्लाइडिंग का खतरा बढ़ जाता है और सड़के बंद हो जाती है। यात्री यहाँ वहां फँस जाते हैं।
*4. केदारनाथ के रास्ते में विभिन्न स्थनों की दूरियां 
दिल्ली से हरिद्वार : 250 से 300 किलोमीटर
हरिद्वार से ऋषिकेश : 24 किलोमीटर
ऋषिकेश से देवप्रयाग : 71 किलोमीटर
देवप्रयाग से श्रीनगर : 35 किलोमीटर
श्रीनगर से रुद्रप्रयाग : 32 किलोमीटर
रुद्रप्रयाग से दो रास्ते : एक रास्ता केदारनाथ और दूसरा रास्ता बदरीनाथ
रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी : 45 किलोमीटर
गुप्तकाशी से सोनप्रयाग : 31 किलोमीटर
सोनप्रयाग से गौरीकुंड : 5 किलोमीटर
गौरीकुंड से केदारनाथ : 16 किलोमीटर (नया रास्ता और पैदल चढ़ाई)

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

भारेश्वर मंदि‍र

 और प्राचीन मंदि‍र दूसरा नहीं भरेह का इति‍हास तो बक्तप के पंछि‍यों सा उड़ गया लेकि‍न अपने पद चि‍न्ह यहां के भारेश्वर मंदि‍र और कि‍ले के अवशेषों रूप में छोड़ गया। भारेश्वर मंदि‍र का नि‍र्माण भी कि‍ले के नि‍र्माण काल से ही जुड़ा़ हैं। इटावा जनपद में भारेश्वर मंदि‍र जि‍तना वि‍शाल और प्राचीन दूसरा मंदि‍र नहीं है। मंदि‍र का नि‍र्माण पंचायत शैली में रहा होगा परन्तु अब इसका अस्‍ि‍तत्व अत्यधि‍क क्षीण हो गया है। इटावा और औरैया क्षेत्र के नि‍कटवर्ती मंदि‍रों (देवकली और टि‍क्सी) में दुर्ग वास्तु की स्पष्ट छाप मि‍लती है। टि‍क्सी ओर देवकली से भी प्राचीन भारेश्वर मंदि‍र है। ऐसा प्रतीत होता है कि‍ दूर्गस्थापत्यत को मंदि‍र वास्तु में समावेश करने की प्रकि‍या का प्रारम्भं भारेश्वर से ही हुआ। भारेश्वर मंदि‍र एक अति‍ वि‍शाल जगती (मंदि‍र का चबूतरा)पर स्थापि‍त है। प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। दांए पार्श्व में यमुना और चम्बेल की वि‍स्तीर्ण जलधाराएं आपस में मि‍ल रही हैं। भारेश्वर महादेव के अभि‍षेक के लि‍ये दोनों नदि‍यां पहले प्रति‍स्पर्धा करतीं रहीं और अंत में दोनों ने संयुक्तं रूप बनाकर आने का नि‍र्णय कर लि‍या हो। प्रकृति‍ की इस छटा का अवलोकन मंदि‍र के प्रत्येक स्थान से होता है। मंदि‍र के दाएं पार्श्व को बहुत मजबूती से गढ़ा गया है। दीवार में बुर्ज और समतल स्थांन अलग से बने हैं। दीवार के मध्य‍ में रक्षक स्तम्भ भी हैं। इनमें पानी नि‍कलने का भी स्था‍न है। दीवार और उसके ऊपर समतल स्थातन का प्रयोग बाढ़ रक्षा तथा बढ़े-ग्रस्तों की सहायता के लि‍ये कि‍या जाता रहा होगा। मंदि‍र की अधि‍क ऊचांई का कारण भी नि‍कटवर्ती नदि‍यों से बाढ़ रक्षा का रहा होगा। सीढ़ि‍यों से मंदि‍र के गर्भग्रह की ओर जाने के लि‍ए सीढ़ि‍यों की संख्या एक सौ आठ बताई जाती है। प्रत्येक सीढ़ी आठ इंच के लगभग मोटी है। चारदीवारी के नीचे सामरि‍क महत्व का एक लम्बा बरामदा है। बरामदे में दाई और भूतल ने नीचे की ओर तहखानों के लि‍ये सीढ़ि‍यॉ चली गई हैं। बरामदा लगभग 5 फि‍ट चौड़ा है। बरामदे के बाहर मराठा शैली में नदी की ओर छतरि‍यॉ बनी हुई है। यह छतरि‍यॉ पतले स्तम्भों पर टि‍की है। मंदि‍र की सीढ़ी मार्ग पर लगभग 50 सीढि‍यां चढ़ने के पश्चात पुन: सुरंग जैसा लम्बा बरामदा है। इन बरामदों का सभवत सैनि‍कों के लि‍ये प्रयोग कि‍ये जाने की योजना थी। मंदि‍र मार्ग में इस प्रकार के सामरि‍क महत्व के बरामदों और छतरि‍यों का होना तत्कालीन वि‍देशी आक्रमणों के समय मंदि‍रों को नष्ट करने के लि‍ये होने वाले हमलों की याद दिलाता है। मंदि‍र के पूर्ण अधि‍ष्ठा पन पर प्राचीन मूर्तिया के अवशेष वि‍खरे पड़े हैं। इन मूर्ति‍या में वराह,सूर्य ,लक्ष्मी और महि‍ष्मार्दिनी के अंकन है। इस प्रकार के अंकन 10 बीं से 12 बीं शताब्दि‍यों के मध्यन प्रचुर मात्रा में कि‍ये गये। उपर्युक्ती कालखण्ड् में काल प्रस्तेर का प्रयोग कि‍या गया जो यहां के मूर्तिशि‍ल्पव में भी है। भारेश्वोर मंदि‍र का शि‍खर भी दुर्ग स्थाहपत्यभ का अनुपम उदाहरण है। मंदि‍र का स्कयन्धर भाग अत्यकन्त‍ सुदृढ़ पत्थिरों और ईटों से नि‍र्मि‍त है। कि‍ले के ही समान गुम्बाज के ठीक नीचे कपि‍शीर्ष बने हैं। इनका प्रयोग शत्रु से मोर्चा लेते समय बाण वर्षा और पत्थ र फेंकने के लि‍ये कि‍या जाता था। गुम्बकज दोहरी बास्तु् शैली में नि‍र्मि‍त है। गुम्बथज के शीर्ष तक पहुंचने के लि‍ये जटि‍ल शैली में सीढ़ि‍यों का नि‍र्माण कि‍या गया है। शीर्ष पर तड़ि‍त के स्था।न पर पत्थेर का एक लघु गोल स्त म्भल है शि‍खर के बाहरी भाग पर ही मूर्ति शि‍ल्पह का अंकन है। मूर्तिशि‍ल्प में हाथी तथा घड़ि‍याल जैसी आकृति‍यॉ है। एक स्थाबन पर कच्छ प की भी आकृति‍ है। इन प्रमाणों के आधार पर भारेश्व्र महादेव में शक्‍ि‍तपीठ भी रही होगी क्यों कि‍ गज का सम्बीन्ध‍ लक्ष्मीर,घड़ि‍याल का सम्बेन्धश दुर्गा(शेर से पहले घड़ि‍याल ही दुर्गा का वाहन था) तथा कच्छतप का सम्बीन्धी यमुना से है। पत्थपर की मूर्तिशि‍ल्पभ पर सीमेंट का भी प्रयोग है। मंदि‍र के गर्भगृह में विशाल शि‍वलि‍गं की स्थाटपना है। गर्भग्रह में अन्द(र की ओर प्रति‍मा-फलक स्थापपना के लि‍ये स्थाभन छोड़े गये हैं। शि‍खर के नीचे प्राय: देवि‍यों के लि‍ये नवरात्र में चढ़ाये जाने वाले झण्डेक, रखें हुये हैं जो मंदि‍र की प्रतीकात्मेक श्रद्धा की अभि‍व्यिक्‍ि‍त करते हैं। यहां शि‍वरात्रि‍ के अवसर पर भरेह के राजवंश की ओर से वि‍शाल मेले का भी आयोजन होता है।

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

अगली बार शिलोंग चेरापूंजी का प्लान बने तो गारो हिल्स भी जोड़ना अपनी लिस्ट में... और अगर विद फैमिली हो, तब तो ज़रूर ही ज़रूर जाना...

जनाब, पूर्वोत्तर से दूर बैठकर इसकी बातें करना बड़ा आसान है... "बेइंतिहा खूबसूरती" की कल्पना करना बड़ा सहज है... मोस्ट पॉपुलर टूरिस्ट सर्किट में घूमकर चले जाना और फिर कहना कि इधर तो बच्चा बच्चा हिंदी जानता है... ढाई हजार के कमरे में बैठकर मेहमाननवाजी की बातें करना...
अरे, कभी रिमोट में जाओ... असली दुनिया मिलेगी... दो दिन भी टिक जाओ तो कहना... मेघालय में 11 जिले हैं... शिलोंग, चेरापूंजी एक ही जिले में हैं... यही टूरिस्ट सर्किट है... इसके अलावा 10 जिले और भी हैं... गारो हिल्स में 5 जिले हैं... या शायद 4... और बड़े खतरनाक फीडबैक मिल रहे हैं उधर के...
उग्रवादी गतिविधि, जीरो टूरिज्म, बांग्लादेश बॉर्डर, चुनावी माहौल... अगली बार शिलोंग चेरापूंजी का प्लान बने तो गारो हिल्स भी जोड़ना अपनी लिस्ट में... और अगर विद फैमिली हो, तब तो ज़रूर ही ज़रूर जाना...
कल जब मैंने लिखा था कि मेघालय में हिंदी नहीं है, तो एक मित्र ने मुझे झूठा बोल दिया था... वो ज़रूर शिलोंग, चेरापूंजी से ही लौट गया होगा... यह फोटो जोवाई का है, जहाँ हम चिकन समोसा लेते-लेते बाल-बाल बचे और सब्जी पराँठा इस उम्मीद में खा रहे हैं कि आलू की सब्जी में चिकन, बीफ या पोर्क नहीं होगा...


सुबह गुवाहाटी से चले... लेकिन शिलोंग ने बिल्कुल भी आकर्षित नहीं किया... मुझे शहर पसंद नहीं, भले ही वो कितना ही बड़ा 'टूरिस्ट प्लेस' हो... शिलोंग पीक ज़रूर गये, लेकिन बुध को वो बंद रहती है... जोवाई आ गये... सड़क ने दिल जीत लिया... जोवाई में रुकना था...
पहला होटल... एक महिला... औसत कमरा... हरद्वार में तीन तीन सौ के मिलते हैं ऐसे कमरे... कितने का है?... सत्रा सौ... मुझे सत्रह सौ सुनायी पड़ा... दोबारा बताओ, हाऊ मच?... सत्रा सौ... इस बावली को हिंदी नहीं आती... मेघालय में हिंदी नहीं है... शायद सात सौ को सत्रा सौ बोल रही है... या फिर सात सौ ही बोल रही होगी, लेकिन मेरे कान बज रहे हैं...
फिर वो आयी अंग्रेजी पे... वन थाउजेंड सेवन हंड्रेस... मेरे दीदे फ़टे रह गये... यह तो वाकई सत्रह सौ कह रही है... मोलभाव करूँ भी तो कितना!... आठ सौ... नाईं...
दीप्ति ने पूछा... कितने का है?... सत्रह सौ का... चक्कर खाकर गिरने से बाल बाल बची...
...
जोवाई में और होटल ढूंढने लगे... अचानक समोसे दिख गये... रुक, रुक... कमरा तो होता रहेगा, लेकिन समोसा फिर ना मिलेगा...
... तो फिलहाल की कहानी ये है कि कमरा तो 800 का मिल गया, लेकिन हम समोसे नहीं